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आज छठीव्रती खरना का करेगी विधि-विधान

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छठ महापर्व पर वर्धा व सिरना नदी पर लगेगा मेला.

संवाददाता-माजरी

माजरी में शिराना नदी और वर्धा नदी में छठ पर्व की तैयारी शुरू हो गई है. इस महापर्व में उत्तर भारतीयों के अलावा सभी धर्मों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। छठ पूजा के लिए वे नदी पर अपना स्थान लेकर बेदी बनाकर उस जगह कों साफ करते हैं। छठ पर्व की शुरुआत 5 नवंबर से हो चुकी है, जिसमें पहले दिन को “नहाय-खाय” कहते हैं, जिसमें महिलाएं स्नान कर स्वच्छता का पालन करते हुए अन्न-जल ग्रहण करती हैं. दूसरे दिन “खरना” पर विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जिसमें गुड़ की खीर और ठेकुआ शामिल होते हैं. छठ पर्व कई मान्यताओं से भरा हैं. इसमें भगवान सूर्य देव की आराधना की जाती है. यह पर्व सभी पर्वों में कठिन और शक्तिशाली माना जाता है. इस पर्व को करने से लोगों की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
छठ पूजा में ‘खरना’ का है बड़ा महत्व, जानिए क्या है खरना
छठ पर्व के दूसरे दिन यानी खरना 6 नवंबर को है। खरना को लोहंडा भी कहा जाता है और खरना वाले दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं, जो मन की शुद्धता के लिए किया जाता है। इस दिन छठी मैया के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है. चार दिनों तक चलने वाली महापर्व छठ पूजा की शुरुआत 5 नवंबर,मंगलवार से होने वाली है, जो कि 8 नवंबर तक चलेगी। छठ पूजा के पहले दिन नहाए-खाए, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे दिन सुबह सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा का महापर्व सूर्यदेव और षष्ठी माता को समर्पित है। इस दिन संतान के स्वास्थ्य, दीर्घायु के लिए महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं। वहीं, छठ पूजा की शुरूआत नहाय खाय के साथ खरना से होती है। वहीं महापर्व का खरना का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसे में आइए जानते है छठ पूजा के दिन खरना का क्या महत्व है।
जानिए महापर्व छठ पूजा में खरना का महत्व
छठ पर्व के दूसरे दिन यानी खरना के दिन इस बार छठ महापर्व की शुरुआत 5 नवंबर को नहाय खाय के साथ शुरू हो रही है। 6 नवंबर को छठ पर्व का दूसरा दिन यानी खरना। खरना को लोहंडा भी कहा जाता है और खरना वाले दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं, जो मन की शुद्धता के लिए किया जाता है। इस दिन छठी मैया के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है। प्रसाद में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। खरना की शाम को गुड़ से बनी खीर का भोग लगाया जाता है, कुछ जगहों पर इस खीर को रसिया भी कहते हैं। खास बात यह है कि माता का पूरा प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर तैयार किया जाता है। प्रसाद तैयार होने के बाद सबसे पहले व्रती महिलाएं इसे ग्रहण करती हैं, उसके बाद इसे बांटा जाता है। फिर परिवार के अन्य सदस्य भी इसे ग्रहण करते हैं।
इस दिन भगवान सूर्य की भी पूजा अर्चना की जाती है और व्रती छठी मैया के गीत भी गाते हैं। खरना में खीर के साथ दूध और चावल से तैयार किया गया पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी भी तैयार की जाती है। इसके साथ ही छठ का प्रमुख प्रसाद ठेकुआ भी तैयार किया जाता है। खरना बेहद कठिन माना जाता है। ऐसा कहा जाता है, जो महिलाएं इस महापर्व के कठिन व्रत को पूरे नियम के साथ करती हैं। उनकी सभी मनोकामना पूरी होती है और उनके परिवार के सदस्यों पर कभी किसी प्रकार की कोई मुसीबत नहीं आती है।